पता है मैं हमेशा खुश क्यों रहता हूँ?
क्योंकि मैं खुद के सिवा किसी से कोई उम्मीद नहीं रखता।
करीब इतना रहो कि रिश्तों में प्यार रहे,
दूर भी इतना रहो कि आने का इंतज़ार रहे,
रखो उम्मीद रिश्तों के दरमियान इतनी,
कि टूट जाये उम्मीद मगर रिश्ते बरक़रार रहें।
अभी कुछ वक्त बाकी है, अभी उम्मीद कायम है,
कहीं से लौट आओ तुम, मोहब्बत सांस लेती है।
उसकी प्यारी मुस्कान होश उड़ा देती हैं,
उसकी आँखें हमें दुनिया भुला देती हैं,
आएगी आज भी वो सपने में यारो,
बस यही उम्मीद हमें रोज़ सुला देती हैं।
अभी तक है उसके लौट के आने की उम्मीद,
अभी तक ठहरी है ज़िंदगी अपनी जगह,
लाख ये चाहा कि उसे भूल जाऊं पर,
हौंसले अपनी जगह, बेबसी अपनी जगह।
बहुत चमक है उन आँखों में अब भी,
इंतज़ार नहीं बुझा पाया है उम्मीद की लौ।
उम्मीद की किरण के सिवा कुछ नहीं यहाँ,
इस घर में रौशनी का बस यही इंतज़ाम है।
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो,
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता।
दूर हो के तुमसे ज़िंदगी सज़ा सी लगती है,
यह साँसे भी जैसे मुझसे नाराज सी लगती हैं,
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ,
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।
बीते दिनों की भूली हुई बात की तरह,
आँखों में जागता है कोई रात की तरह,
उससे उम्मीद थी की निभाएगा साथ वो,
वो भी बदल गया मेरे हालात की तरह।